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Saturday 30 November 2013

बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी-


आखिर क्यों :आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द प्राप्त होना

Virendra Kumar Sharma 

क्रीड़ा-हित आतुर दिखे, दिखे परस्पर नेह |
पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह | 

सम्पूरक दो देह, मगर संदेह हमेशा |
होय तृप्त इत देह, व्यग्र उत रेशा रेशा |

भाग चला रणछोड़, बड़ी देकर के पीड़ा |
बनता कच्छप-यौन, करे न छप छप क्रीड़ा || 



गोरी *गोही आदतन, द्रोही हरदम मर्द |
गर्मी पल में सिर चढ़े, पल दो पल में सर्द |

पल दो पल में सर्द, दर्द देकर था जाता |
करता था बेपर्द, रहा हर वक्त सताता |

बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी |
होय श्रमिक या भूप, नचा सकती है गोरी ||

*छुपा कर रखने में सक्षम 


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