बाँझिन को हो पुत्र रत्न, बने बांगड़ू बीर | मिले हूर लंगूर को, सेंठा मारक तीर | सेंठा मारक तीर, बने तो बांछे खिलती | विकसित मानस कली, मुरादें यूँ हीं मिलती | आठ पर्व नौ बार, फूल कर कुप्पा होना | कुप्पी का क्या काम, बेंच कर घोडा सोना ||
ख़्वाब देखना
अनलिमिटेड सपने दिखा, ठगे गुरू घंटाल | लुटते औंधे मुंह पड़े, समय माल कंगाल | समय माल कंगाल, धकेले बदहाली में | ऊँचे ऊँचे ख़्वाब, बहे गन्दी नाली में | पहले लो मुंह धोय, और औकात आँक लो | तदनुसार हों ख़्वाब, उछलकर ऊँच झाँक लो ||
संस्कार यह राक्षसी, पर नारी को छीन | अंत:पुर में कैदकर, करे जुल्म संगीन | करे जुल्म संगीन, कहो कमलेस कहानी | सजा स्वयं तदबीज, दर्ज कर फर्द बयानी | करता लेख हरण, नाम अपने छपवाते | आओ रविकर शरण, आज ही पाठ पढ़ाते ||
अंगारों पर ही बसा, है झरिया अधिकाँश | भू-धसान हरदिन घटे, जलता जिन्दा मांस | जलता जिन्दा मांस, जलाने वालों सुन लो | इक बढ़िया सी मौत, स्वयं से पहले चुन लो | खड़ी हमारी खाट, करे चालाक मिनिस्टर | करता बंदरबांट, कटे वासेपुर अन्दर ||
कौड़ी कौड़ी बेंचते, झारखंड का माल ।
बाशिंदे कंगाल है, पूछे मौत सवाल ।
पूछे मौत सवाल, आज ही क्या आ जाऊं ?
पल पल देते टाल, हाल क्या तुम्हें बताऊँ?
डूब मरे सरकार, घुटाले करके भारी ।
होते हम तैयार, रखो तुम भी तैयारी ।।
अंग नंग अंगा दफ़न, कफन बिना फनकार । रंग ढंग बदले सकल, रहा लील अंगार । रहा लील अंगार, सार जीवन का पाया । होवे न उद्धार, आग जिसने भड़काया । रविकर भरसक खाय, लिए मुट्ठी अंगारा । राक्षस किन्तु जलाय, कोयला रखे दुबारा ।।
हुई कहानी सब ख़तम, दफ़न जवानी दोस्त | हड्डी कुत्ते चाटते, सिस्टम खाता गोश्त | सिस्टम खाता गोश्त, रोस्ट कर कर के नोचा | बन जाता जब टोस्ट, होस्ट इक अफसर पोचा | आया न आनंद, बके लंदफंदिया बानी |
समारोह दीक्षांत में, दिग्गी राजा आय | हिंदी-डिग्री सौंपते, पाय सोनिया माय | पाय सोनिया माय, थैंक्यू कह शरमाये | वो संसद जब जाय, समझ में चर्चा आये | अडवानी की बंद, करे इक दिवस बोलती | गुस्से का इजहार, जुबाँ इस कदर खोलती |
इत्ता गुस्सा बाप रे, अडवानी की भूल | यू पी ए टू कह गए, दे दी जम के तूल | दे दी जम के तूल, मीडिया समझ न पाया | रविकर ने इस बार, उसे ऐसे समझाया | हिंदी भाषा ज्ञान, ख़तम की पूर्ण पढ़ाई |
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