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Wednesday 28 November 2012

नयन से चाह भर, वाण मार मार कर -

2-घनाक्षरी


श्री राम की सहोदरी : भगवती शांता सर्ग-4/सर्ग-5

 के अंश 
 नयन से चाह भर, वाण मार मार कर
हृदय के आर पार, झूरे चला जात है | 

नेह का बुलाय लेत, देह झकझोर देत
झंझट हो सेत-मेत, भाग भला जात है |

बेहद तकरार हो, खुदी खुद ही जाय खो
पग-पग पे कांटे बो, प्रेम गीत गात है |

मार-पीट करे खूब, प्रिय का धरत रूप
नयनों से करे चुप, ऐसे आजमात  है ||



 धरती के वस्त्र पीत, अम्बर की बढ़ी प्रीत 
भवरों की हुई जीत, फगुआ सुनाइये ।

जीव-जंतु हैं अघात, नए- नए हरे पात 
देख खगों की बरात, फूल सा लजाइये ।

चांदनी शीतल श्वेत, अग्नि भड़काय देत 
कृष्णा को करत भेंट, मधुमास आइये ।  

धीर जब अधीर हो, पीर ही तकदीर हो 
उनकी तसवीर को , दिल में बसाइए ।।

Monday 26 November 2012

मोदी को करके खफा, योगी को नाराज-

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"आप" का उदय और भाजपाईयो का रुदन:एक लेखा जोखा

DR. PAWAN K. MISHRA  
 मोदी को करके खफा, योगी को नाराज ।
घर से बाहर "जेठ" कर, चली बचाने लाज ।
चली बचाने लाज, केजरी देवर प्यारा ।
चूमा-चाटी नाज, बदन जब नगन उघारा ।
हुई फेल सब सोच, बिठा नहिं पाई गोदी ।
बचे हुवे अति हीन, विरोधी दिखते मोदी ।। 

अरुंधती राय : केजरीवाल के खुलासे

मनोज पटेल 

हत्यारे फासिस्ट ठग, व्यभिचारिणी जमात |
भ्रष्टाचारी व्यवस्था, खुराफात अभिजात |
खुराफात अभिजात, भूल दंगे से आगे |
देश गर्त में जात, मरें अब सभी अभागे |
देख देख श्मशान, अनीती से नहिं मारें |
शासन करते रहे, सदा से ही हत्यारे ||

Sunday 25 November 2012

शोहरत खातिर खोलते, षड्यंत्रों की लैब -




फितरत चालों में दिखी, सालों से है ऐब ।
शोहरत खातिर खोलते, षड्यंत्रों की लैब ।
 
षड्यंत्रों की लैब, करे नीलामी भारी ।
खाय दलाली ढेर, उजाड़े प्राकृत सारी ।
 
शुद्ध हवा फल फूल, धूप की बाकी हसरत ।
हरकत ऊल-जुलूल, बदलती रहती फितरत ।।




Saturday 24 November 2012

हुवे असहमत तो भले, क्यूँ जाते हो रीश-

 

सहमत होने पर हिले, जब हल्का सा शीश ।
हुवे असहमत तो भले, क्यूँ जाते हो रीश ?

क्यूँ जाते हो रीश, पटकते बम क्यूँ भाई ?
पटक रहे अति विकट, पड़े क्या उन्हें सुनाई ?

प्रकट करो निज भाव, कहो ना बुरा भला कुछ  ।
सीखो संयम धैर्य, गया ना चला कहीं कुछ ।
 


Wednesday 21 November 2012

महिला शिक्षा पर करे, जो भी खड़े सवाल -रविकर


 दस शिक्षक के तुल्य है, इक आचार्य महान |
सौ आचार्यों से बड़ा, पिता तुम्हारा जान || 



सदा हजारों गुना है, इक माता का ज्ञान |
  शिक्षा शाश्वत सर्वथा, सर्वोत्तम वरदान ||



 गार्गी मैत्रेयी सरिस, आचार्या कहलांय |
गुरु पत्नी आचार्यिनी, कही सदा ही जाँय ||



कात्यायन  की वर्तिका,  में सीधा उल्लेख |
महिला लिखती व्याकरण, श्रेष्ठ प्रभावी लेख || 



महिला शिक्षा पर करे, जो भी खड़े सवाल |
पढ़े पतंजलि-ग्रन्थ जब, मिटे ग्रंथि जंजाल ||

Tuesday 20 November 2012

हे नारी शक्ति प्रणाम -होम-मिनिस्टर कर रहे, शाँति-समागम होम



 
होम-मिनिस्टर कर रहे, शाँति-समागम होम ।
समा रहा गम रोम में, धुँआ होम का रोम ।
 
sad-man
धुँआ होम का रोम, मिनिस्टर हुवे विदेशी ।
रहा उन्ही का वित्त,  विगाड़े  हालत वेशी ।

Lady using ATM card for withdraw cash from savings account at Maim,Bombay Mumbai,Maharashtra,India photo
जी डी पी बढ़ जाय, खर्च भी बढ़ता रविकर ।
किचेन कैबिनेट पस्त, मस्त हैं होम मिनिस्टर ।।
Kitchen Cabinets

Sunday 18 November 2012

अधिक जरुरी है कहीं, स्वस्थ रहे संतान -


 बेटे की चाहत रखें, ऐ नादाँ इंसान ।
अधिक जरुरी है कहीं, स्वस्थ रहे संतान ।
 
स्वस्थ रहे संतान, छोड़ यह अंतर करना ।
दे बेटी को मान, तुझे धिक्कारूं वरना ।
 
बेटा बेटी भेद, घूमता कहाँ लपेटे ।
स्वस्थ विवेकी सभ्य , चाहिए बेटी बेटे ।।

Tuesday 13 November 2012

तेल नहीं घर आज रहा, फिर दीपक डारि जलावस की -

दीवट दीमक लील गई, रजनी घनघोर अमावस की ।
दामिनि दारुण दाप दिखा, ऋतु बीत गई अब पावस की ।
कीट पतंग बढे धरती, धरती नहिं पाँव, भगावस की ?
तेल नहीं घर आज रहा, फिर दीपक डारि जलावस की ??




झल्कत झालर झंकृत झालर झांझ सुहावन रौ  घर-बाहर ।

  दीप बले बहु बल्ब जले तब आतिशबाजि चलाय भयंकर ।

 दाग रहे खलु भाग रहे विष-कीट पतंग जले घनचक्कर ।

नाच रहे खुश बाल धमाल करे मनु तांडव  हे शिव-शंकर ।।

संध्या वंदन आरती, हवन धूप लोहबान |
आगम निगम पुराण में, शायद नहीं बखान |
शायद नहीं बखान, परम्परा किन्तु पुरानी |
माखी माछर भाग, नीम पत्ती सुलगानी |
भारी बड़े विषाणु, इन्हें बारूद मारती |
शुरू करें इक साथ, पुन: वंदना आरती ||


डीजल का काला धुंआ, फैक्टरी का जहर |
कल भी था यह केमिकल, आज भी ढाता कहर |
आज भी ढाता कहर, हर पहर हुक्का बीडी |
क्वायल मच्छरमार, यूज करती हर पीढ़ी |
डिटरजेंट, विकिरण, सहे सब पब्लिक पल पल |
बम से पर घबराय, झेलता  काला डीजल ||


भिनन्दन दीपावली, दीप मालिका मस्त ।
खें रँगोली विविधता, *बेदक  मार्ग प्रशस्त ।।
बेदक मार्ग प्रशस्त, विविध पकवान पके हैं ।
लाला लुल लाचार,लवासी लसक छके हैं ।
तरानी वन्दना, लगा के भेजी चन्दन ।
त्रिलोचन सा नाच, करें सबका अभिनन्दन ।

वेद मानने वाला =हिन्दू
लसक = नाचने वाला
लवासी=गप्पी

त्रिलोचन की जद जरा, करती है भयभीत ।
भोले की औघड़ दशा, वैसे तो नवनीत ।
वैसे तो नवनीत, मगर हैं तो संहारक ।
मारक दिखे त्रिशूल, नाग जब तब फुफकारत ।
इसीलिए आशीष, उमा का लेकर मोचन ।
आया हूँ निष्काम, 'काम' नहिं कर त्रिलोचन ।।

Saturday 10 November 2012

झल्कत झालर झंकृत झालर झांझ सुहावन रौ घर-बाहर-

दीप पर्व की
हार्दिक शुभकामनायें

देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय-रविकर


किरीट  सवैया ( S I I  X  8 )
झल्कत झालर झंकृत झालर झांझ सुहावन रौ  घर-बाहर ।

  दीप बले बहु बल्ब जले तब आतिशबाजि चलाय भयंकर ।

 दाग रहे खलु भाग रहे विष-कीट पतंग जले घनचक्कर ।

नाच रहे खुश बाल धमाल करे मनु तांडव  हे शिव-शंकर ।।


मत्तगयन्द सवैया  
दीवाली में जुआ  
मीत समीप दिखाय रहे कुछ दूर खड़े समझावत हैं ।
 
बूझ सकूँ नहिं सैन सखे  तब हाथ गहे लइ जावत हैं ।
 
जाग रहे कुल रात सबै, हठ चौसर में फंसवावत  हैं ।
 
हार गया घरबार सभी, फिर भी शठ मीत कहावत हैं ।।

Friday 9 November 2012

फिर भी शठ मीत कहावत हैं -

मत्तगयन्द सवैया  
दीवाली में जुआ  
मीत समीप दिखाय रहे कुछ दूर खड़े समझावत हैं ।
 
बूझ सकूँ नहिं सैन सखे  तब हाथ गहे लइ जावत हैं ।
 
जाग रहे कुल रात सबै, हठ चौसर में फंसवावत  हैं ।
 
हार गया घरबार सभी, फिर भी शठ मीत कहावत हैं ।।

Thursday 8 November 2012

हँस हठात हत्या करे, रहे ऐंठ बल खाय

कातिल क्या तिल तिल मरे, तमतमाय तुल जाय ।
हँस हठात हत्या  करे, रहे ऐंठ बल खाय ।

 
रहे ऐंठ बल खाय, नहीं अफ़सोस तनिक है ।
कहीं अगर पकड़ाय, डाक्टर लिखता सिक है ।

 
मिले जमानत ठीक, नहीं तो अन्दर हिल मिल ।
खा विरयानी मटन, मौज में पूरा कातिल ।।

Tuesday 6 November 2012

पाजी शहजादा | मुश्किल में काजी ||

 गजल की एक और कोशिश-

 हारे हो बाजी ।
छोड़ो लफ्फाजी ।

होती है गायब -
वो कविताबाजी ।।

पल में मर जाती 
रचनाएं ताज़ी ।।

दिल्ली से लौटे -
होते हैं हाजी  ।।

पाजी  शहजादा
मुश्किल में काजी ।।

रिश्वत पर आधी ।
रविकर भी राजी ।।

घृत डालो नित प्रेम का, बनी रहे लौ-आग


उम्मीदों का जल रहा, देखो सतत चिराग |
घृत डालो नित प्रेम का, बनी रहे लौ-आग | 

बनी रहे लौ-आग, दिवाली चलो मना ले |
अपना अपना दीप, स्वयं अंतस में बालें |

भाई चारा बढे, भरोसा प्रेम सभी दो |
सुख शान्ति-सौहार्द, बढ़ो हरदम उम्मीदों ||

Sunday 4 November 2012

तर्क-संगत टिप्पणी की पाठशाला--


 "क्षमा -याचना सहित"
हर  लेख  को  सुन्दर कहा,  श्रम  को  सराहा हृदय से, 
अब  तर्क-संगत  टिप्पणी  की  पाठशाला  ले  चलो ||
Traditional Roses Mala
खूबसूरत  शब्द  चुन  लो,  भावना  को  कूट-कर के
माखन-मलाई में मिलाकर, मधु-मसाला  ले  चलो  |





विज्ञात-विज्ञ  विदोष-विदुषी  के विशिख-विक्षेप मे |
इस वारणीय विजल्प पर, इक विजय-माला ले चलो |  
वारणीय=निषेध करने योग्य     विजल्प=व्यर्थ बात      विशिख=वाण  
            विदोष-विदुषी=  निर्दोष विदुषी                 विज्ञात-विज्ञ= प्रसिध्द विद्वान       

    

क्यूँ   दूर  से  निरपेक्ष  होकर,  हाथ  करते  हो  खड़े -
ना आस्तीनों  में  छुपाओ,  तीर - भाला  ले  चलो ||

टिप्पणी के गुण सिखाये, आपका अनुभव सखे,
चार-छ: लिख कर के  चुन लो, मस्त वाला ले चलो ||


लेखनी-जिभ्या जहर से जेब में रख लो, बुझा कर -
हल्की सफेदी तुम चढ़ाकर,  हृदय-काला  ले  चलो |

टिप्पणी जय-जय करे,  इक लेख पर दो बार हरदम-
कविता अगर 'रविकर' रचे तो, संग-ताला ले चलो |

 

Saturday 3 November 2012

भेंटे नब्बे खोखे नोट-भांजे दर्शन अफलातून ।

 गजल कहने की कोशिश जारी है-

मोटी-चमड़ी पतला-खून ।
नंगा भी, पहने पतलून  ।

भेंटे नब्बे खोखे नोट -
भांजे दर्शन, अफलातून ।

भुना शहीदी, दादी-डैड
*शीर्ष-घुटाले, लगता चून ।
 *सिर मुड़ाना  / चोटी के घुटाले 

 पंजा बना शिकंजा खूब-
मातु-कलेजी, खाए भून ।

मिली-भगत सत्ता-पुत्रों से 
लूटा तेली, लकड़ी-नून । 

दस हजार की रविकर थाल
उत फांके हों, दोनों जून ।।