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Monday 30 April 2012

निकृष्ट जीवन मानिए, जो होते कामांध-

कामकाज  में  लीन  है,  सुध  अपनी विसराय |
उत्तम प्राकृत मनुज  की,  ईश्वर  सदा  सहाय ||


The surgical instrument manufacturing industry of Sialkot in Pakistan   

कामगार की जिन्दगी, खटता  बिन तकरार |
थोथे  में   ढूंढे  ख़ुशी,  मालिक  का  आभार || 


    Lazy Man Laying on a Couch
कामचोर  कायल  करे,   कहीं   कायली  नाँय |
दूजे के श्रम पर  जिए,  सोय-सोय मर जाय ||   

File:Pisanello 010.jpg 


निकृष्ट   जीवन   मानिए,  जो  होते  कामांध |
डूबे  और  डुबाय   दें,   ज्यों  टूटे  तट-बाँध  ||

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कामध्वज  की  जिन्दगी,  त्याग नीर का नेह |
क्षुधित जगत पर मर मिटे, पर-हित  धारी  देह ||

File:Italienischer Maler des 17. Jahrhunderts 001.jpg

पेटू   कामाशन   चहे,  कामतरू   के   तीर |  
भोजन  के  ही  वास्ते,  धारा   तोंद - शरीर ||

मिले पेट में अन्न, खेत में क्यूँकर आए-

खाएं दिन में दस दफा, बिना भूख के अन्न ।
मोटू भोजन-भट्ट का, धर्म-कर्म संपन्न ।

धर्म-कर्म संपन्न, व्यर्थ न चूहे दौड़ें
खाकर मस्त मुटाय, आलसी बने निगोड़े ।

 
 मिले पेट में अन्न, खेत में क्यूँकर आए।
नहीं रहे हैं कूद, बैठकर चूहा खाए ।।    

File:Rattus norvegicus 1.jpg

Friday 27 April 2012

कब से 'रविकर' तन-बदन तलता रहा-

ऐसे दीपक को बुझाये क्या हवा -
तूफां में भी जो सदा जलता रहा ।


हृदय-देहरी पर , हथेली ने ढका  
मुश्किलों का दौर यूं  टलता  रहा ।


तेल की बूँदे सदा रिसती रहीं-
अस्थियाँ-चमड़ी-वसा गलता रहा ।

खून के वे आखिरी कतरे चुए -
जिनकी बदौलत दीप यह पलता रहा ।

  अब अगर ईंधन चुका तो क्या करे 
कब से 'रविकर' तन-बदन तलता रहा ।|

Wednesday 25 April 2012

इंजीनियरिंग कालेज कैम्पस : बदतर हालात

आँखों देखी

इक्जाम की आदत गई, इकजाम का अब फेर है |
उस समय था काम  पढना, अब, काम ही हरबेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||

तब अंक की खातिर पढ़े, हर जंग में जाकर लड़े |
अब अंक में मदहोश हैं, बस जंग-लगना  देर है ।
अंधेर है, अंधेर है ||     

थे सभी काबिल बड़े, होकर मगर काहिल पड़े |
ज्ञान का अवसान है, अपनी गली का शेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||

न श्रेष्ठता की जानकारी, वरिष्ठ जन से मार भारी |
जिंदगी  की  समझदारी,  में  बहुत  ही  देर  है |
अंधेर है, अंधेर है ||

Saturday 21 April 2012

बचा लो धरती, मेरे राम-

सात अरब लोगों का बोझ,  अलग दूसरी दुनिया खोज |
हुआ यहाँ का चक्का जाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 1 !
सिमटे वन घटते संसाधन, अटक गया राशन उत्पादन |
बढ़ते रहते हर  दिन  दाम, बचा लो  धरती,  मेरे  राम ! 2|


बढे  मरुस्थल  बाढ़े ताप, धरती सहती मानव पाप  |
अब भूकंपन आठों-याम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 3 !
हिमनद मिटे घटेगा पानी, कही  बवंडर की मनमानी  |
करे सुनामी काम-तमाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 4 !
 

जीव - जंतु  के  कई प्रकार, रहा प्रदूषण उनको मार  |
दोहन शोषण से कुहराम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 5 !
जहर कीटनाशक का फैले, नाले-नदी-शिखर-तट मैले | 
सूक्ष्म तरंगें भी बदनाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 6 !


मारक गैसों की भरमार, करते बम क्षण में संहार  |
 जला रहा जहरीला घाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 7 !
मानव - अंगों  का  व्यापार, सत्संगो  का सारोकार|
बिगढ़ै पावन तीरथ धाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 8 ! 

Friday 20 April 2012

संसाधन को लूट, व्यर्थ करते उदघोषण

शोषण करते धरा का, पोषण कर-कर दैत ।
सारे विकसित देश हैं, अजगर-मकर-करैत ।

अजगर-मकर-करैत, निगलते फाड़ें काटें ।
चले दुरंगी चाल, लड़ावैं हड़पैं बाँटें ।

संसाधन को लूट, व्यर्थ करते उदघोषण । 
बड़ा चार सौ बीस, बढ़ाता जाता शोषण ।।

Tuesday 17 April 2012

प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज-

प्रेम-क्षुदित व्याकुल जगत, मांगे प्यार अपार |
जहाँ  कहीं   देना   पड़े,   कर   देता   है   मार  ||
 
कुर्सी   के   खटमल   करें,  मोटी-चमड़ी  छेद |
मर  जाते  अफ़सोस  पर,  पी के खून सफ़ेद  ||  


 
प्रगति   पंख   को   नोचता,  भ्रष्टाचारी   बाज |
लेना-देना   क्यूँ   करे ,  सारा  सभ्य  समाज  ||



सम्बन्धों  में जब दिखे, अपने तनिक खटास |
बलि का बकरा ढूंढ़ लो,  जो   कोई   हो  पास ||  


 
प्यार बढ़े मदहोश हों,  बेशक  औरत मर्द |
मदद दूसरा क्यों करे, बढ़ जाए  जब   दर्द ??





Monday 16 April 2012

मान ईश का खेल, गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ -

दुःख की घड़ियाँ गिन रहे, घड़ी - घड़ी  सरकाय ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।


भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
रविकर मन बहलाय, स्वयं को यूँ ना खोते ।


समय-चक्र गतिमान, घूम लाये दिन बढ़िया ।
मान ईश का खेल, गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ ।।

Sunday 15 April 2012

भ्रूणध्नी माता-पिता, देते असमय फेंक-

जीवमातृका पञ्च कन्या तो बचा ||

जीवमातृका  वन्दना, माता  के  सम पाल |
जीवमंदिरों को सुगढ़, करती सदा संभाल ||
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/6/61/Stone_sculpt_NMND_-20.JPG 
शिव और जीवमातृका

धनदा  नन्दा   मंगला,   मातु   कुमारी  रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
https://lh3.googleusercontent.com/-ks78KCkMJR4/Tj_QMkR5FTI/AAAAAAAAAPI/PFy_h6xRHYY/bhrun-hatya_417408824.jpg
भ्रूण-हत्या
माता  करिए  तो  कृपा, सातों  में  से  एक |
भ्रूणध्नी माता-पिता,  देते असमय फेंक ||
http://aditikailash.jagranjunction.com/files/2010/06/bhrun-hatya.jpg
भ्रूण-हत्या 
कुन्ती   तारा   द्रौपदी,  लेशमात्र   न   रंच |
आहिल्या-मन्दोदरी , मिटती कन्या-पञ्च |
http://www.barodaart.com/Oleographs%20Mythology/PanchKanya-M(1).jpg
पन्च-कन्या
सातों  माता  भी  नहीं, बचा  सकी  गर  पाँच |
सबकी महिमा  पर  पड़े,  मातु  दुर्धर्ष  आँच |

Saturday 14 April 2012

अंत उफ़ आसान थोड़ा-


गम भरा *गम-छा निचोड़ा,  *अंगौछा
बीच  में  ही *फींच छोड़ा |   * धोना

दर्द  रिश्ते  से  रिसा  तो,
खूबसूरत   मोड़   मोड़ा  |

चल न पाये दो कदम प्रिय
गिर गए  गम-*गोड़ तोड़ा |  *पैर

नौ दो ग्यारह हो गए-उफ़
किस तरह का जोड़ जोड़ा |


आज भी घूरे खड़ा  वह
राह  का   मगरूर  रोड़ा  |

धूप गम-छा क्या सुखाये-
घास का अब दोस्त घोड़ा |

इश्क की  फुन्सी हुई थी
बन  चुकी  नासूर-फोड़ा |

घूर "रविकर" घूर ले तो     
अंत उफ़ आसान थोड़ा ||
घूर = घूमने के अर्थ में बहुधा प्रयुक्त होता है भोजपुरी मे,

Thursday 12 April 2012

रक्त-कोष की पहरेदारी-

चालबाज, ठग, धूर्तराज   सब,   पकडे   बैठे   डाली - डाली |

आज बाज को काम मिला वह करता चिड़ियों की रखवाली |


गौशाला मे धामिन ने जब, सब गायों पर छान्द लगाया |
मगरमच्छ ने  अपनी हद में,  मछली-घर मंजूर  कराया ||  


घोटाले-बाजों  ने ले ली,  जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
जल्लादों ने झपटी झट से,  मठ-मंदिर की  कुल मुख्तारी ||


अंग-रक्षकों  ने  मालिक  की  ले ली  जब से मौत-सुपारी |
लुटती  राहें,   करता  रहबर  उस  रहजन  की  ताबेदारी  ||


शीत - घरों  के  बोरों  की  रखवाली  चूहों  ने हथियाई  |
भले - राम   की   नैया   खेवें,  टुंडे - मुंडे  अंधे भाई  ||


तिलचट्टों ने तेल कुओं पर, अपनी कुत्सित नजर गढ़ाई |
 रक्त-कोश  की  पहरेदारी,  नर-पिशाच के जिम्मे  आई |



होय कहाँ उद्धार, चलो पर-हित कुछ साधें

मरने से जीना कठिन, पर हिम्मत न हार ।
 कायर भागे कर्म से, होय कहाँ उद्धार ।  

होय कहाँ उद्धार, चलो पर-हित कुछ  साधें ।
 बनिए नहीं लबार, गाँठ जिभ्या पर बांधें ।

फैले रविकर सत्य, स्वयं पर जय करने से । 
 जियो लोक हित मित्र, मिले न कुछ मरने से ।   

Tuesday 10 April 2012

प्रकट करो आभार, पहन सकती जो नथुनी -

नथुनी मिली सुनार से, गाये नित गुणगान ।

भूली प्रभु को जो दिया, सुन्दर काया दान  ।

सुन्दर काया दान , नाक से नथुनी सोहे ।

सोहे सदा सुनार, भुलाई फिरती मोहे ।

रविकर नकटी होय, लगे तू इकदम भुतनी ।

प्रकट करो आभार, पहन सकती जो नथुनी ।।
http://2.bp.blogspot.com/_Q09g8aDEtNc/S-BRW4WgUKI/AAAAAAAAKxA/9E0aFcpXYl4/s1600/Shobana-Traditional-Indina-Jewllery.jpg